ऑनलाइन क्लास का बच्चा – डिजिटल युग की मासूमियत

ऑनलाइन क्लास: डिजिटल युग में एक बच्चे की कहानी

सूर्य की किरणें कमरे में धीरे-धीरे प्रवेश कर रही थीं, मानो अलसाए हुए रवि को भी आज जल्दी उठना पसंद न हो। लेकिन आरव, सात साल का एक नन्हा बालक, पहले से ही अपने लैपटॉप के सामने बैठा था। उसकी आँखें स्क्रीन पर टिकी थीं, जहां उसकी ऑनलाइन क्लास शुरू होने वाली थी। यह डिजिटल युग की मासूमियत थी - सुबह की चाय की चुस्की से पहले, आरव अपने गुरुजी को 'गुड मॉर्निंग' कहने के लिए तैयार था।

आरव का परिवार एक छोटे से कस्बे में रहता था। पिताजी एक स्थानीय दुकान में काम करते थे और माँ घर संभालती थी। लॉकडाउन के बाद, जब स्कूल बंद हो गए, तो आरव की पढ़ाई ऑनलाइन शुरू हो गई। पहले तो उसे यह सब बहुत अजीब लगा। स्क्रीन पर दिखते टीचर और दोस्तों को छू नहीं पाना, क्लासरूम की मस्ती और शोरगुल को मिस करना - यह सब उसके लिए नया था।

एक दिन, क्लास में गुरुजी ने एक कहानी सुनाई - 'चाँद और तारे'। आरव कहानी में इतना खो गया कि उसे समय का पता ही नहीं चला। कहानी खत्म होने के बाद, गुरुजी ने बच्चों से कहा, "अब आप सब अपनी-अपनी खिड़की से चाँद और तारों को देखकर उनके बारे में कुछ पंक्तियाँ लिखिए।" आरव झट से खिड़की के पास भागा। उस रात पूर्णिमा थी और चाँद अपनी पूरी चमक के साथ आसमान में विराजमान था। आरव ने अपनी कॉपी निकाली और लिखना शुरू कर दिया।

"चाँद गोल है, जैसे मेरी दादी की रोटी। तारे छोटे हैं, जैसे मेरी माँ की आँखों में सपने।" उसने लिखा। गुरुजी ने जब उसकी पंक्तियाँ सुनीं, तो वे बहुत खुश हुए। उन्होंने आरव की कल्पनाशीलता की प्रशंसा की। उस दिन आरव को एहसास हुआ कि ऑनलाइन क्लास भी मजेदार हो सकती है, अगर उसमें दिल लगाया जाए।

लेकिन ऑनलाइन क्लास की अपनी मुश्किलें भी थीं। कभी इंटरनेट कनेक्शन चला जाता, तो कभी घर में शोरगुल होता, जिससे आरव का ध्यान भटक जाता। एक दिन, क्लास के बीच में आरव का छोटा भाई, चिंटू, रोने लगा। आरव की माँ उसे चुप कराने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन चिंटू का रोना बंद नहीं हो रहा था। आरव परेशान हो गया। उसने गुरुजी से माफी मांगी और माइक बंद कर दिया।

गुरुजी ने स्थिति को समझा। उन्होंने आरव को एक निजी संदेश भेजा: "आरव, परेशान मत हो। यह सब जीवन का हिस्सा है। तुम एक अच्छे बच्चे हो। अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो और अपने परिवार की मदद करो।" गुरुजी के शब्दों ने आरव को बहुत हिम्मत दी। उसने फिर से क्लास में ध्यान लगाया और अपनी पढ़ाई पूरी की।

धीरे-धीरे, आरव ऑनलाइन क्लास का आदी हो गया। उसने अपने दोस्तों के साथ ऑनलाइन ग्रुप स्टडी शुरू कर दी। वे एक-दूसरे को सवाल पूछते, जवाब देते और मिलकर पढ़ाई करते। आरव ने यह भी सीखा कि तकनीक का सही इस्तेमाल कैसे किया जाता है। उसने ऑनलाइन लाइब्रेरी से किताबें पढ़ना शुरू कर दिया और इंटरनेट पर नई-नई चीजें सीखीं।

एक दिन, आरव ने गुरुजी को बताया कि वह एक वैज्ञानिक बनना चाहता है। गुरुजी बहुत खुश हुए। उन्होंने आरव को प्रोत्साहित किया और उसे विज्ञान से संबंधित किताबें और वेबसाइटें बताईं। आरव ने गुरुजी को धन्यवाद दिया और अपनी पढ़ाई में और भी मेहनत करने का फैसला किया। ऑनलाइन क्लास ने आरव को न केवल पढ़ाया, बल्कि उसे एक बेहतर इंसान भी बनाया। यह डिजिटल युग की मासूमियत थी - एक बच्चे का तकनीक के साथ जुड़ाव, जो उसे ज्ञान और सपनों की दुनिया में ले जाता है। आरव अब समझ गया था कि चाहे क्लासरूम हो या स्क्रीन, सीखना कभी बंद नहीं होता।

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