अंधेरे कमरे की चिट्ठी: रहस्यमय प्रेम

अंधेरे कमरे की चिट्ठी: रहस्यमय प्रेम कहानी

कमरा अंधेरा था, मानो युगों से रोशनी ने यहां कदम न रखा हो। धूल की मोटी परत हर चीज पर जमी थी, जैसे किसी भूले हुए अतीत की कहानी कहती हो। रिया ने अपनी उंगलियों से मेज़ पर जमी धूल हटाई, जहां उसे वो मिली – एक चिट्ठी। एक पुरानी, पीले रंग की चिट्ठी, जिस पर स्याही से कुछ लिखा था।

रिया, अपने दादाजी की पुरानी हवेली की सफाई कर रही थी। दादाजी अब नहीं रहे, और हवेली बरसों से खाली पड़ी थी। ये कमरा, हवेली का सबसे अंदरूनी कमरा था, जिसे दादाजी हमेशा बंद रखते थे। रिया को हमेशा से इस कमरे के बारे में जानने की उत्सुकता थी, और आज, आखिरकार उसने इसे खोलने का फैसला किया।

चिट्ठी खोलते ही एक भीनी खुशबू आई – गुलाब और चंदन की मिली-जुली सुगंध। रिया ने पढ़ना शुरू किया। "मेरी प्रिय चंद्रिका," चिट्ठी शुरू हुई। "तुम्हारी याद में हर पल तड़पता हूं। ये अंधेरा कमरा, तुम्हारी हंसी से गूंजता था। अब, सिर्फ तुम्हारी यादें ही यहां रह गई हैं।" पत्र पर आगे लिखा था, "क्या तुम मुझे कभी माफ़ कर पाओगी? क्या हम फिर कभी मिल पाएंगे?" हस्ताक्षर थे – 'तुम्हारा, विमल'।

रिया का दिल धड़कने लगा। चंद्रिका कौन थी? और विमल? क्या ये दादाजी का कोई पुराना प्रेम था? उसने हवेली के पुराने नौकर रामू काका को बुलाया। रामू काका बरसों से हवेली में काम कर रहे थे।

"रामू काका, क्या आप चंद्रिका नाम की किसी महिला को जानते थे?" रिया ने पूछा।

रामू काका का चेहरा पीला पड़ गया। उन्होंने धीरे से कहा, "चंद्रिका... वो तो दादाजी की जवानी की प्रेम कहानी थी।" उन्होंने बताया कि चंद्रिका और दादाजी एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे, लेकिन किसी कारणवश उनकी शादी नहीं हो पाई थी। चंद्रिका ने हवेली छोड़ दी और फिर कभी वापस नहीं आई।

"और विमल?" रिया ने पूछा।

रामू काका ने सिर हिलाया। "विमल... विमल चंद्रिका का भाई था। वो दादाजी और चंद्रिका के रिश्ते के खिलाफ था। उसने ही शायद चंद्रिका को हवेली छोड़ने पर मजबूर किया।"

रिया को समझ में आया कि दादाजी ने क्यों इस कमरे को हमेशा बंद रखा था। ये कमरा उनकी अधूरी प्रेम कहानी का गवाह था। चिट्ठी में विमल का पश्चाताप साफ़ झलक रहा था। रिया ने फैसला किया कि वो चंद्रिका को ढूंढेगी। उसे दादाजी और चंद्रिका को एक बार फिर मिलाने की कोशिश करनी थी।

उसने रामू काका से चंद्रिका के बारे में और जानकारी ली और शहर के पुराने अभिलेखागार में खोजबीन शुरू की। आखिरकार, उसे चंद्रिका के बारे में एक सुराग मिला – एक वृद्धाश्रम में चंद्रिका नाम की एक महिला रहती है।

रिया तुरंत वृद्धाश्रम पहुंची। वहां, उसने एक बूढ़ी महिला को व्हीलचेयर पर बैठे हुए पाया। उनकी आंखें धुंधली थीं, लेकिन उनमें एक चमक थी। रिया ने धीरे से कहा, "चंद्रिका जी?"

महिला ने रिया की ओर देखा। "कौन हो तुम?"

रिया ने उन्हें दादाजी की चिट्ठी दिखाई। चिट्ठी पढ़ते ही चंद्रिका की आंखों में आंसू आ गए। "विमल?" उन्होंने कहा। "विमल ने ये चिट्ठी लिखी?"

रिया ने उन्हें सारी कहानी बताई। चंद्रिका ने बताया कि विमल ने उनसे दादाजी से दूर रहने के लिए कहा था, क्योंकि उसे लगता था कि दादाजी उनके लिए सही नहीं हैं। बाद में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

रिया ने चंद्रिका को दादाजी की हवेली में वापस ले जाने का प्रस्ताव दिया। चंद्रिका ने सहमति दे दी। जब चंद्रिका ने अंधेरे कमरे में कदम रखा, तो उनकी आंखों में आंसू थे। उन्होंने कहा, "ये कमरा... ये कमरा मेरी यादों से भरा है।"

हालांकि दादाजी अब नहीं थे, रिया ने चंद्रिका को हवेली में रहने के लिए कहा। चंद्रिका ने हवेली को फिर से अपना घर बना लिया। अंधेरे कमरे में अब फिर से रोशनी थी, रोशनी उम्मीद की, प्यार की, और क्षमा की। रिया ने दादाजी की अधूरी प्रेम कहानी को आखिरकार पूरा कर दिया था।

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